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उसका दोष क्या है भाग - 15 15 पार्ट सीरीज

उसका दोष क्या है (भाग-15) 

           कहानी अब तक 
  संगीता मां बनने वाली है और वह मायके में है। विद्या की जाँच के लिए रमेश आजकल-आजकल कहकर टाल रहा है।
                   अब आगे 
विद्या को रमेश के टालमटोल करने वाले रवैया से अपने लिए अधिक चिंता होने लगी थी। उसके विवाह को बारह वर्ष से अधिक हो गये और वह मां नहीं बन पाई थी। घर में सभी का व्यवहार उसके साथ अच्छा था,परंतु कोई भी उसके मां नहीं बनने पर कभी भी किसी तरह की आवाज नहीं उठाते। वह अपने समाज में देखती थी,स्कूल की साथियों से भी सुनती थी,विवाह के दो-तीन वर्ष होते-होते यदि मां नहीं बने तो पूरा परिवार जोड़ा के सिर पर सवार हो जाते हैं। परंतु यहां तो सासु मां ने भी कभी कुछ नहीं कहा। रमेश तो सारी बातें सुनकर भी अनसुना किये रहते हैं।
     कई रविवार को वह सारा काम शीघ्र निबटा कर मेडिकल टेस्ट के लिए जाने के लिए तैयार रही परंतु रमेश कभी किसी काम में व्यस्त हो जाते,तो कभी कहीं बाहर चले जाते। वह विद्या को चिकित्सा हेतु ले जाने के लिये कभी समय नहीं निकाल पाये। विद्या को संदेह होने लगा था, कहीं ऐसा तो नहीं यह लोग चाहते ही नहीं  - उसकी संतान हो! रमेश की संतान तो हो ही रही है न! विद्या की हो या नहीं हो उससे क्या अंतर पड़ता है ! इस रविवार को भी बैठी रह गई वह,रमेश सुबह के निकले हुए रात गये तक नहीं आये,उसे चिंता भी होने लगी। रमेश आधी रात गए वापस लौटे और अपनी व्यस्तताओं का बखान करना प्रारंभ किया। 
अब विद्या का धैर्य जवाब दे चुका था,और उसने फैसला ले लिया था स्वयं से अपनी चिकित्सा करवाने की। रमेश पर निर्भर नहीं रहेगी,वह स्वयं अपनी चिकित्सा करवाएगी और पूरी चिकित्सा करवाएगी!-  यह निर्णय लेने के बाद विद्या का मन हल्का हो गया। उसने डॉक्टर के द्वारा दिया हुआ जांच केंद्र का फोन नंबर निकाला फोन करके जांच के लिए आने का समय तय किया। यह समय उसने दो दिन बाद का लिया था । अब हल्के मन से अपने सभी कार्यों को निपटा रही थी वह।
   आजकल सासू माँ भी नहीं थीं,फिर गाँव चली गई थीं। संगीता को बेटा हुआ था और वह मायके से ही गांव चली गई थी,इसलिए सासू मां उसके पास थीं। रमेश से पूछा भी था - 
  "इतने दिनों गाँव में रहती है संगीता बच्चों के साथ तो उनकी पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी"?
   रमेश  -  "संगीता तो यहीं आती,लेकिन माँ और बाबा को कृषि कार्य देखने के लिए गाँव जाना था। ऐसे में संगीता से घर और बच्चा दोनों संभालना मुश्किल हो जाता है। इसलिए वह गाँव में है। बच्चों को वह वहीं पढ़ा रही है। पड़ोस में एक भाई है जो कॉलेज में पढ़ता है,वह भी सहायता करता है। बच्चों को वह पढ़ा देता है। मैं स्कूल जाकर बात करूंगा परीक्षा देने देंगे"।
  बच्चों की पढ़ाई के प्रति रमेश और संगीता का यह लापरवाही भरा रवैया विद्या को पसंद नहीं आ रहा था,परंतु वह कुछ नहीं बोली थी।
अगले दिन विद्या ने अपने स्कूल से एक दिन का अवकाश लिया अपनी जांच करवाने के लिए। नियत समय पर वह निकल गई जांच करवाने। लिखा गया सभी जांच करवाया रिपोर्ट लेकर उसे डॉक्टर को दिखाना था रिपोर्ट देने का समय पूछ कर उसने डॉक्टर को फोन लगाया और अपना परिचय देते हुए रिपोर्ट लेकर आने के लिये समय पूछा। डॉक्टर ने उसे समय दे दिया उसकी पसंद के अनुसार ही। 
  निर्धारित समय पर वह अपने सभी रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास पहुंची। अपनी रिपोर्ट दिखाया। डॉक्टर ने रिपोर्ट अच्छी प्रकार जाँच किया और कहा -   "आप तो कहती थीं परिवार नियोजन का कोई साधन उपयोग नहीं करती हैं,परंतु आपकी रिपोर्ट तो बता रही है प्रतिदिन ओरल पिल्स लेती रही हैं। इन दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण आपकी फर्टिलिटी समाप्त हो गई है,और अब आपका मां बनना संभव नहीं है"।
  विद्या आश्चर्यचकित थी, उसने तो कभी भी ओरल पिल्स नहीं लिया फिर कैसे बोल रही हैं ये कि ............ l
    विद्या -   "डॉक्टर आप विश्वास कीजिये,मैंने कभी भी ओरल पिल्स नहीं लिया,फिर कैसे रिपोर्ट में आया अवश्य कुछ गलत रिपोर्ट में आया है"।
  डॉक्टर  -  "ऐसा कैसे बोल रही हैं आप,
रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है अत्यधिक उपयोग के विषय में। फिर भी आपको विश्वास नहीं तो एक बार दूसरे जांच केंद्र से भी जाँच करवा लें"।
डॉक्टर ने उसे एक दूसरे जांच केंद्र का भी नंबर दिया और कहा -  
     "वैसे तो मैं आश्वस्त हूँ,गलत रिपोर्ट आने की संभावना तो नहीं है। फिर भी आप अपने विश्वास के लिये एक जगह और दुबारा जांच करवा लीजिए"।
और वह उस दूसरे जांच केंद्र जाकर दुबारा अपने सारे टेस्ट करवा कर आई। जब वहां का रिपोर्ट आया तो वहां भी वही था जो पहले जांच केंद्र का था। डॉक्टर ने देखकर कहा -  "देखिये दोनों का रिपोर्ट एक ही है। अब तो सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है। आप नहीं लेती रही हैं तो किसी और ने आपको दिया है,परंतु प्रतिदिन आपने ओरल पिल्स का उपयोग किया है"।
विद्या खामोशी से सारी बातें सुनती रही फिर वापस आ गई। उस सारी रात वह बेचैन रही। विगत एक सप्ताह से जब से उसका पहला जांच रिपोर्ट आया था। वह चिन्तित थी कुछ जांच केंद्र के विशेषज्ञ ने बताया था,शेष डॉक्टर के द्वारा बताया गया उसके ओरल पिल्स  के उपयोग के संबंध में। वह तभी से परेशान थी और सोच नहीं पा रही थी,कैसे हो रहा है यह । आज दुबारा जाँच का रिपोर्ट देखकर पूरे विश्वास से डॉक्टर ने जो बताया उसने इसे बुरी तरह परेशान कर दिया था।
खाना तो वह वही खाती थी जो घर में सभी खा रहे हैं । उसने कभी स्वयं से ओरल पिल्स लिया नहीं, फिर आखिर कैसे उसको गर्भनिरोधक की अभ्यस्त बताया गया। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। सोच सोच कर वह बीमार हो गई,उसे चक्कर आते। इसकी स्थिति देखकर रमेश ने  पूछ लिया  -  "तुम्हें क्या हो रहा है,तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ लग रहा है। तुम परेशान दिख रही हो। कोइ परेशानी है तो  मुझे बताओ"।
विद्या ने अपनी चिकित्सा के सारे कागजात उसके समक्ष रख दिया। डॉक्टर की कही बातें भी बता दी। फिर उससे पूछा -   
   "बताओ मेरे साथ ऐसा कैसे हो रहा है,कौन कर रहा है मेरे साथ ऐसा"?
     रमेश सुनकर घबरा गया  -   "क्या कह रही हो तुम,ऐसा कैसे हो सकता है भला ? खाना बनाती थी संगीता अवश्य परंतु परोसने के समय तुम भी रहती थी। अक्सर बनाते समय भी रहती ही थी,फिर ऐसा कैसे हो सकता है ? और तुम कह रही हो नियमित, संगीता तो यहाँ नियमित रहती नहीं है। कम समय ही वह यहां रहती है,अधिकतर वह गांव या मायके ही रहती है। ऐसे में वह कैसे ऐसा कर सकती है! तुम्हारा संदेह गलत है"।
     विद्या  -   "मैंने तो नहीं कहा कि संगीता ऐसा कर रही है,परंतु मेरे साथ ऐसा हुआ है। जब मैंने कभी गर्भनिरोधक नहीं लिया,तब मुझे कैसे गर्भनिरोधक की अभ्यस्त बताया गया। कुछ भी समझ नहीं आ रहा मुझे तो। मेरे विरुद्ध कुछ तो साजिश हो रही है"।
     उस पूरी रात रोती रही विद्या l यह ऐसी बातें थीं जो वह किसी को बता भी नहीं सकती थी। बताती भी किससे, यह उसकी पूर्ण व्यक्तिगत बात थी। कोई ऐसी सहेली भी नहीं थी जिससे वह इस बात पर चर्चा कर पाती।
उसका शक हर तरफ से घूम कर पूरे सोच विचार के बाद रमेश पर आकर ही टिक रहा था। उसे प्रतिदिन रमेश ही दूध लाकर देता था। क्या वह दूध में मिलाता रहता था गर्भनिरोधक ? उसके अतरिक्त और किसीने उसे नियमित कुछ खाने पीने की वस्तु तैयार कर नहीं दिया। उसने अपने मस्तिष्क में यह विचार आने पर गहनता से इस पर विचार किया। उसका दिल दिमाग दोनों रमेश के नाम की ही गवाही दे रहा था।
     अगले दिन लड़ बैठी थी रमेश से वह। झिंझोड़ ही तो डाला था उसे यह कहते हुए -   
   "तुमने मेरे साथ ऐसा कैसे किया.....कैसे किया ऐसा अन्याय! मैं तुम्हारे पास विवाह के लिए कहने नहीं आई थी! तुमने सोच समझकर मुझ से विवाह किया.....  मुझसे साजिश रचाया विवाह के नाम पर"।
क्रोध में भरी हुई वह अपने मायके चली गई उसी दिन। उसने अपने मायके से ही  विद्यालय आना जाना किया।
   रमेश जाकर उसको और उसके माता-पिता को अनेकों प्रकार से समझा कर और उसे मना कर घर ले आया। अब वह बुझी-बुझी सी रहती हालांकि रमेश उसका पूरा ध्यान रखता परन्तु वह रमेश को दिल से क्षमा नहीं कर पायी थी।
      एक दिन स्कूल से आते समय उसे कुछ सामान लेना था,घर आने के बदले  स्कूल की अपनी एक दोस्त के साथ बाजार चली गई। सामान लेने के बाद दुकान से निकली,दोस्त को विदा कर स्वयं ऑटो की प्रतीक्षा कर रही थी। अचानक सामने संगीता दिख गई जो बगल की दुकान में कुछ खरीदारी कर रही थी रमेश के साथ।
  उसे आश्चर्य हुआ संगीता गांव से कब आई ? वह जाकर उसके पास खड़ी हो गई और पूछा  - 
   "तुम गांव से कब आई"?
    रमेश उसे देखकर घबड़ा गया और अटकते हुए उसने कहा  -  
  "अ....भी ...आ....ज ही दो...प...हर में आई ....है, इसे डॉक्टर ....से ....कुछ..... जांच.... करवाना था। वापस भी ....चली जाएगी ....आज ही,बच्चों को..... छोड़ कर आई..... है ....इसलिए"
  संगीता खामोश थी उसने कुछ भी नहीं कहा। विद्या दुकान से निकलकर जाने लगी तो रमेश ने पुकारा -  
   "रुको विद्या संगीता को भेजकर मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा"।
   विद्या -   "आवश्यकता नहीं है मैं स्वयँ जा सकती हूँ। तुम जाओ संगीता को गांव तक पहुंचाने"।
और वह वापस आ गई। अब उसके मस्तिष्क में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा था। ऐसा कैसे हो सकता है अपने छोटे से बच्चे को भी छोड़ कर संगीता गांव से यहां आ जाए। जरूर कुछ ऐसा हो रहा है जो अभी भी उससे छुपाया जा रहा है। हो सकता है संगीता फिर यहीं पर भाड़ा के घर में रह रही हो जैसे पहले रहती थी,क्योंकि उसके तीनों बच्चों का नाम स्कूल में लिखाया हुआ था, तो इतने दिन तक वे स्कूल से अनुपस्थित कैसे रह सकते थे ? अवश्य झूठ बोला जा रहा है विद्या से। और माँ बाबा भी गांव के बदले यहीं संगीता के साथ होंगे। उन्हीं के पास बच्चों को छोड़कर वह रमेश के साथ खरीदारी करने आई होगी। इन लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि मैं बाजार में मिलूंगी।
   उसे अब अपने विवाह से लेकर अभी तक की प्रत्येक घटना स्मरण हो रही थी,और सभी घटनाओं पर विचार करके इस निष्कर्ष पर पहुंची थी, उसके साथ धोखा किया गया। उसकी नौकरी को देखते हुए पैसे के लालच में उससे विवाह किया गया। रमेश ने बहुत होशियारी से उसकी सारी जमा पूंजी मकान बनाने के नाम पर निकाल ली,और बैंक का कर्जा भी इतना अधिक है कि उसके वेतन का अधिकांश भाग प्रत्येक माह उसमें चला जाता है। वह रमेश के लिए पत्नी नहीं सिर्फ सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन कर रह गई। पूरी साजिश रच कर रमेश ने उसका बच्चा नहीं होने दिया जिससे उसकी किसी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं जमा सके। पूरा अधिकार उसकी विवाहिता पत्नी और उसके बच्चों का ही रहे। ओह नहीं,क्या मैं पढ़-लिख कर इतनी बेवकूफ निकली !उसे पहचान नहीं पाई! अब उसे रमेश से वितृष्णा होने लगी थी l
     कथा जारी है।
                                    क्रमशः 
   निर्मला कर्ण

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3 Comments

वानी

16-Jun-2023 09:11 PM

Nice

Reply

Abhinav ji

14-Jun-2023 09:29 AM

Nice 👍

Reply

Punam verma

14-Jun-2023 01:17 AM

Very nice

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